अँखिया बोल गयी करुणाकी ।
देखी नयन की झाँकी ।
अँखिया ||टेक||
बिन कारण उपकार देखती ।
सदय हृदय की नीत परखती ॥
तरसत रस चर्चाकी ॥ अँखिया ...॥ १ .।।
बिनु पूजे पूजा कर पाती ।
बिनु बैखर गाने लग जाती ॥
तार धरे झुमवाँ की ॥ अँखिया ... ॥२ ॥
व्याकुल दुखसे - सुखसे श्रवती ।
सुन्दर मृगिनी - सम मृदु बहती ॥
रहती निरन्तर साकी ॥
अँखिया ...॥ ३ .।। जो
परिखे अँखियन की बोली ।
वह पाये नित शान निराली !!
समय पडे प्रभुताकी ! ॥ अँखिया ...॥ ४ ॥
जिन अँखियनमें भक्ति निरन्तर ।
वह रँग जावे बाहर भीतर ॥
छुपी न जात नसाकी ! ॥
ॲखिया ...॥ ५ ॥
राग करे , लाली बढ जावे ।
त्याग करे , अनुराग दिखावे ||
ज्योति जगे समता की ! ॲखिया ...॥६ ॥
तुकड्यादास यही अँखियन से ।
स्वाँस -स्वाँस लिपटे गुरु गम से ॥
निर बरसे ममताकी !! अँखिया ...॥ ७।।
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